Surya namaskar योग के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण अभ्यास है। यह स्वास्थ्य , शक्ति तथा क्रियाशीलता में वृद्धि करता है। इसके अभ्यास से शारीरिक और मानसिक प्रगति के साथ – साथ आध्यात्मिक प्रगति भी होती है।
अत्यधिक व्यस्तता तथा आधुनिक उलझन पूर्ण जीवन के कारण लोगों के लिए नियमित रूप से योगाभ्यास करना संभव नहीं हो पाता। व्यक्तिगत समस्यायें , आर्थिक विषमता और भय के कारण मानसिक तनाव तथा चिंताएँ उत्पन्न होती रहती है।
आधुनिक विकास के कारण आज हम शारीरिक श्रम से दूर हो गए है। शारीरिक तथा मानसिक रूप से अस्वस्थ्य रहने वालों की संख्या बढ़ रही है। योगाभ्यास तनावों को दूर करने तथा शारीरिक व मानसिक रोगों के उपचार के लिए एक प्रभावी पद्धति है। Surya Namaskar एक सम्पूर्ण अभ्यास है और प्रतिदिन मात्र 5 से 15 मिनट तक का नियमित समय देकर इससे प्राप्त होने वाले आश्चर्यजनक लाभों का अनुभव किया जा सकता है।
सूर्य नमस्कार का शाब्दिक अर्थ है – सूर्य को नमस्कार। प्राचीन काल में दैनिक कर्मकांड के रूप में सूर्य की नित्य आराधना की जाती थी। सूर्य नमस्कार 12 आसनों से मिलकर बना है। बारी – बारी से आगे तथा पीछे मुड़ने वाले इन आसनों के माध्यम से शारीरिक अंगो तथा मेरुदंड में काफी खिंचाव उत्पन्न होता है तथा वे लचीले बनते है। अन्य आसनों की अपेक्षा सूर्य नमस्कार कही अधिक प्रभावशाली है।
कई लोगों के शरीर नसों के कड़ेपन , मासपेशियो में तनाव तथा जोड़ों में विषाक्त पदार्थो के जमा होने के कारण कड़े रहते है। कुछ दिनों के नित्य अभ्यास के बाद इसमें सहजता आ जाती है।
Table of Contents
सूर्य नमस्कार के 12 आसन | Surya Namaskar steps
- प्रणामासन | Pranamasana
- हस्त उत्तानासन | Hasta Uttanasana
- पादहस्तासन | Padahastasana
- अश्व संचालनासन | Ashwa sanchalanasana
- पर्वतासन | Parvatasana
- अष्टांग नमस्कार | Ashtanga namaskar
- भुजंगासन | Bhujangasana
- पर्वतासन | Parvatasana
- अश्व संचालनासन | Ashwa sanchalanasana
- पादहस्तासन | Padahastasana
- हस्त उत्तानासन | Hasta Uttanasana
- प्रणामासन | Pranamasana
सूर्य नमस्कार की विधि

1. प्रणामासन
दोनों पैरों को एक साथ रखते हुए सीधे खड़े हो जाइए और आँखों को बंद कर लीजिये।
दोनों हाथों को छाती के सामने नमस्कार की मुद्रा में जोड़िये।
पुरे शरीर को ढीला छोड़ दीजिये।
मंत्र का उच्चारण मौखिक अथवा मानसिक रूप से कीजिये।
श्वास - सामान्य श्वसन कीजिये।
मंत्र - ॐ मित्राय नमः।

2. हस्त उत्तानासन
दोनों भुजाओं को सिर के ऊपर उठाते हुए तानिये।
हथेलियाँ ऊपर की ओर खुली हो।
दोनों भुजाओं को कंधे की सीध में अलग - अलग रखिये।
आराम से जितना संभव हो सके , सिर को पीछे की ओर झुकाइये।
मंत्र का उच्चारण करिये।
श्वास - भुजाओं को ऊपर उठाते समय श्वास अंदर लीजिये।
मंत्र - ॐ रवये नमः।

3. पादहस्तासन
गतिशीलता बनाये रखते हुए सामने की ओर झुकते जाईये जब तक की उँगलियाँ या हाथ जमीन को पैरों के सामने तथा बगल में स्पर्श न कर लें।
मस्तक को घुटने से स्पर्श कराने की कोशिश कीजिये।
अधिक जोर न लगाए। पैर सीधे रहने चाहिए।
मंत्र का उच्चारण कीजिये।
श्वास - सामने की ओर झुकते समय श्वास छोड़िये।
मंत्र - ॐ सूर्याय नमः।

4. अश्व संचालनासन
बायें पैर को जितना संभव हो सके पीछे ले जाईये।
इसी के साथ दायें पैर को मोड़िये , लेकिन पंजा अपने स्थान पर ही रहे।
भुजाएँ अपने स्थान पर सीधी रहें।
इसके बाद शरीर का भार दोनों हाथों , बायें पैर के पंजे , बायें घुटने व दायें पैर की अंगुलियों पर रहेगा।
सिर पीछे को उठाइये , कमर को धनुषाकार बनाइये और ऊपर की तरफ देखिये।
मंत्र का उच्चारण कीजिये।
श्वास - बायें पैर को पीछे ले जाते समय श्वास लीजिये।
मंत्र - ॐ भानवे नमः।

5. पर्वतासन
हथेलियों को जमीं से सटा लीजिये।
दाएँ पैर को पीछे बाएँ पैर के पास रखिये।
नितम्बों को ऊपर उठाइये और सिर को दोनों भुजाओं के बीच में ले जाईये।
अंतिम स्तिथि में पैर और भुजाएँ सीधी रहें।
एड़ियों को जमीन से स्पर्श करने का प्रयत्न कीजिये, किन्तु अधिक ज़ोर न लगाइए।
मंत्र का उच्चारण कीजिये।
श्वास - दाएँ पैर को सीधा करते एवं धड़ को उठाते समय श्वास छोड़िये।
मंत्र - ॐ खगाय नमः।

6. अष्टांग नमस्कार
घुटनों को नीचे लाते हुए जमीन से सटाइये , फिर नितम्बों को ऊपर रखते हुए सीने एवं ठुड्डी को जमीन से सटाइए।
अंतिम स्तिथि में दोनों पैरों की अंगुलियाँ , दोनों घुटने , सीना , दोनों हाथ , तथा ठुड्डी भूमि का स्पर्श करें।
नितम्ब और पेट जमीन से थोड़े ऊपर उठे रहें।
मंत्र का उच्चारण कीजिये।
श्वास - स्तिथि 5 में छोड़ी हुई श्वास को बाहर ही रोके रखिये।
मंत्र - ॐ पूष्णे नमः।

7. भुजंगासन
हाथों को सीधा करते हुए शरीर को कमर से ऊपर उठाइये।
सिर को पीछे की ओर झुकाइये।
पैर तथा पेट का निचला भाग जमीन पर रहेगा , भुजाओं से धड़ को सहारा दे।
मंत्र का उच्चारण कीजिये।
श्वास - धड़ को ऊपर उठाते समय श्वास अंदर ले।
मंत्र - ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।

8. पर्वतासन
यह स्थिति 5 की पुनरावृत्ति है । भुजाओं और पैरों को सीधा रखिये । नितम्बों को उठाते हुए पर्वतासन में आइए । सिर को स्थिति 5 के समान दोनों भुजाओं के बीच में लाइए । हाथ और पैर स्थिति 7 की जगह से हिले नहीं । नितम्बों को ऊपर उठाइए और एड़ियों को जमीन पर टिकाइए ।
मंत्र का उच्चारण कीजिये।
श्वास - नितम्बों को उठाते समय श्वास बाहर छोड़िये।
मंत्र - ॐ मरीचये नमः।

9. अश्व संचालनासन
यह स्थिति 4 की पुनरावृत्ति है । बाएं पैर को आगे लाकर दोनों हाथों के बीच में रखिए । साथ ही दायें घुटने को जमीन से सटाइये और श्रोणी प्रदेश को आगे की ओर तानिये । स्थिति 4 की तरह मेरुदण्ड को धनुषाकार बनाते हुए ऊपर की ओर देखिए ।
मंत्र का उच्चारण कीजिये।
श्वास - इस स्तिथि में आते समय श्वास लीजिये।
मंत्र - ॐ आदित्याय नमः।

10. पादहस्तासन
यह स्थिति 3 की पुनरावृत्ति है । दाएँ पैर को बाएँ पैर की बगल में ले आइए । पैरों को सीधा करते हुए आगे की ओर झुकिये तथा नितम्बों को उठाते हुए सिर को घुटने के पास लाने का प्रयत्न कीजिए । हाथों को पैरों के पास जमीन से सटा कर रखिए । यह स्थिति 3 की तरह ही है ।
मंत्र का उच्चारण कीजिये।
श्वास - इस स्थिति में आते समय श्वास छोड़िये।
मंत्र - ॐ सवित्रे नमः।

11. हस्त उत्तानासन
यह स्थिति 2 की पुनरावृत्ति है । धड़ को नितम्बों से ऊपर उठाते हुए शरीर को सीधा कीजिए , हाथों को सिर के ऊपर से ले जाते हुए पीछे की ओर मोड़िये । शरीर के पिछले हिस्से को धनुषाकार बनाते हुए स्थिति 2 को दोहराइये ।
श्वास - भुजाओं को ऊपर उठाते समय श्वास अंदर लीजिये।
मंत्र - ॐ अर्काय नमः।

12. प्रणामासन
यह स्थिति 1 की पुनरावृत्ति है । शरीर को सीधा रखते हुए , दोनों हाथों को स्थिति 1 की तरह नमस्कार की मुद्रा में जोड़कर छाती के सामने रखिये ।
मंत्र का उच्चारण कीजिये।
श्वास - अंतिम स्तिथि में आते समय श्वास बाहर छोड़िये।
मंत्र - ॐ भास्कराय नमः।
नोट – 1 से 12 तक वर्णित स्तिथियाँ मिलकर सूर्य नमस्कार का आधा चक्र हुआ। इसकी 1 आवृत्ति पूर्ण करने के लिए उन्हीं आसनों की पुनरावृत्ति की जाती है , परन्तु इसमें स्थिति 4 में बाएँ पैर को पीछे ले जाने के बजाए दाएँ पैर को पीछे ले जाना है तथा स्तिथि 9 में दायाँ पैर आगे लाना है । इस प्रकार एक आवृत्ति के लिये कुल 24 स्थितियाँ ( 12-12 आसनों के 2 समूह ) हैं । इनसे प्रत्येक आधी आवृत्ति करने के पश्चात् शरीर के दायीं और बायीं ओर संतुलन की स्थिति आती है । जब बारहवीं स्थिति पूरी हो जाए तब हाथ को बगल में नीचे ले जाते हुए श्वास अन्दर लें तथा कुछ सेकण्ड रुकने के पश्चात् श्वास बाहर छोड़ते हुए शेष आधी आवृत्ति पूरी करें ।
आदर्श रूप से सूर्य नमस्कार के अभ्यास में सभी 24 आसनों को बिना रूके एक ही बार में पूरा करना चाहिये तथा सही श्वास – प्रक्रिया का ध्यान रखना चाहिये । परन्तु यदि आपको बीच में थकान का अनुभव हो तो शेष अंश प्रारम्भ करने के पूर्व गहरी श्वास लेकर विश्राम करें । अपनी सजगता श्वास पर बनाये रखें । आसनों के बीच या दो आवृत्तियों के बीच थकान होने पर भी इसी प्रकार विश्राम करें । किसी भी हालत में आसन करते समय आपको कष्ट की अनुभूति नहीं होनी चाहिये और हर हालत में आपकी श्वास गहरी रहनी चाहिये ।
सूर्य नमस्कार के मंत्र | Surya Namaskar Mantra
प्रत्येक वर्ष सूर्य बारह विभिन्न स्थितियों ( कलाओं ) से होकर अपना रास्ता तय करता है । इन स्थितियों को ज्योतिष में राशि कहते हैं । प्रत्येक राशि की अलग – अलग विशेषताएँ होती हैं तथा इनके आधार पर ही उनके नामकरण किये गये हैं । सूर्य नमस्कार के बारह सूर्य मंत्र इन बारह नामों से संबंधित हैं , जो इसकी बारह स्थितियों का अभ्यास करते समय दुहराये जाते हैं ।
ये सूर्य मंत्र मात्र सूर्य के नाम ही नहीं हैं , अपितु इनकी ध्वनि उस मूलभूत शाश्वत शक्ति की वाहक है , जिसका प्रतिनिधित्व स्वयं सूर्य करता है । सूर्य मंत्रों को एकाग्रता के साथ surya namaskar करते हुए उच्चारण करने से सम्पूर्ण मानसिक संरचना लाभान्वित होती है ।
इन बारह मंत्रो का शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है :
- ॐ मित्राय नमः – सबके मित्र को प्रणाम
- ॐ रवये नमः – प्रकाशवान को प्रणाम
- ॐ सूर्याय नमः – क्रियाओं के प्रेरक को प्रणाम
- ॐ भानवे नमः – प्रदीप्त होने वाले को प्रणाम
- ॐ खगाय नमः – आकाशगामी को प्रणाम
- ॐ पूष्णे नमः – पोषक को प्रणाम
- ॐ हिरण्यगर्भाय नमः – स्वर्ण के भांति प्रतिभा वाले को प्रणाम
- ॐ मरीचये नमः – सूर्य किरणों को प्रणाम
- ॐ आदित्याय नमः – अदिति – सुत को प्रणाम
- ॐ सवित्रे नमः – सूर्य की उद्दीपन शक्ति को प्रणाम
- ॐ अर्काय नमः – प्रशंसनीय को प्रणाम
- ॐ भास्कराय नमः – आत्मज्ञान प्रेरक को प्रणाम
सूर्य नमस्कार के लाभ | Surya Namaskar Benefits
1. प्रणामासन
लाभ - अभ्यास की तैयारी के रूप में एकाग्र एवं शान्त अवस्था लाता है।
2. हस्त उत्तानासन
लाभ - अमाशय की अतिरिक्त चर्बी को हटाता और पाचन को सुधरता है। इसमें भुजाओं और कंधों की मांसपेशियों का व्यायाम होता है।
3. पादहस्तासन
लाभ - पेट व अमाशय के दोषों को रोकता तथा नष्ट करता है। अमाशय प्रदेश की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है।
कब्ज को हटाने में सहायक है।
रीढ़ को लचीला बनाता एवं रक्त - संचार में तेजी लाता है।
4. अश्व संचलनासना
लाभ - अमाशय के अंगो की मालिश कर कार्य - प्रणाली को सुधारता है। पैरों की मांसपेशियों को शक्ति मिलती है।
5. पर्वतासन
लाभ - भुजाओं एवं पैरों के स्नायुओं एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है। अभ्यास 4 के विपरीत आसन के रूप में रीढ़ को उल्टी दिशा में झुकाकर उसे लचीला बनाता है।
6. अष्टांग नमस्कार
लाभ - पैरों और भुजाओं की मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है। सीने को विकसित करता है।
7. भुजंगासन
लाभ - अमाशय पर दबाव पड़ता है। यह अमाशय के अंगों में जमे हुए रक्त को हटा कर तजा रक्त - संचार करता है। बदहजमी व कब्ज सहित यह आसन पेट के सभी रोगों में उपयोगी है। रीढ़ को धनुषाकार बनाने से उसमें व उसकी मांसपेशियों में लचीलापन आता है एवं रीढ़ के प्रमुख स्नायुओं को नयी शक्ति मिलती है।
प्रत्येक स्थिति के कुछ लाभों का वर्णन किया गया है जो मुख्य रूप से उसी अभ्यास विशेष से संबंधित हैं । वैसे सूर्य नमस्कार से अनेक दूसरे लाभ भी हैं जो अभ्यास के सामूहिक प्रभाव के रूप में मिलते हैं , न कि किसी एक अभ्यास से । शरीर की विभिन्न प्रणालियों जैसे नलिकाविहीन ग्रन्थि प्रणाली , रक्त संचार प्रणाली , श्वास - प्रश्वास प्रणाली , पाचन प्रणाली आदि पर इसका बड़ा शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है और इसके अभ्यास से इन प्रणालियों में सन्तुलन स्थापित हो जाता है । जब इनमें से एक या अनेक प्रणालियाँ अपना संतुलन खो देती हैं तो अनेक रोग उत्पन्न होने लगते हैं । सूर्य नमस्कार इनमे पुनः संतुलन लाता है और अनेकों रोगों से मुक्ति दिलाता है। अनेक व्यक्ति ठीक से श्वास नहीं लेते है जिस प्रकार हमने इसमें बताया है "Pranayam In Hindi | प्राणायाम / श्वास विज्ञान।" सूर्य नमस्कार के क्रमों के साथ श्वास - प्रश्वास का क्रम जोड़ा गया है। अतः यह निश्चित हो जाता है कि जैसी गहरी और लयपूर्ण श्वास लेनी चाहिए , वैसी अभ्यासी सूर्य नमस्कार के साथ प्रतिदिन कुछ समय के लिए अवश्य लेगा। इससे फेफड़ों में भरी दूषित वायु निकलेगी और उसके स्थान पर शुद्ध वायु फेफड़ों को मिलेगी।
अतः जो अच्छे स्वस्थ्य की कामना करते हैं उन्हें सूर्य नमस्कार के अभ्यास से वैसा स्वस्थ्य मिलता है। इसीलिए सभी को सूर्य नमस्कार अवश्य करना चाहिए , चाहे वे स्वस्थ हों या अस्वस्थ , युवक हो या वृद्ध , बड़े हो या छोटे , पुरुष हो या स्त्री।
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